उत्तराखंड के विकास पुरुष कहे जाने वाले नारायण दत्त तिवारी ने गुरुवार को दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली। तिवारी 93 वर्ष के थे। वे बीते एक साल से बीमार चल रहे थे। खास बात ये है आज ही उनका जन्मदिन भी था। 18 अक्टूबर 1925 को उनका जन्म नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। एनडी के निधन से सभी राजनीति पार्टियों में शोक की लहर दौड़ गई। नारायण दत्त तिवारी देश के पहले ऐसे राजनेता थे, जिन्हें एक साथ दो-दो राज्य के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ।
पहली बार 1963 में सोशलिस्ट पार्टी से वे विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1965 में कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और मंत्रीपरिषद में जगह मिली। 1980 में तिवारी पहली बार लोकसभा पहुंचे और इंदिरा गांधी ने उन्हें योजना मंत्री बनाया बाद में एनडी तिवारी ने वित्त, विदेश जैसे कई बड़े मंत्रालय संभाले ।
एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
राजीव गांधी सरकार के दौरान तिवारी 1986-87 तक विदेश मंत्री और 1987-88 तक वित्त मंत्री रहे। 1989 में राजीव गांधी के निधन के बाद एनडी तिवारी को कांग्रेस से प्रधानमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन, 1991 के लोकसभा चुनाव में वे नैनीताल सीट से हार गए। हार की वजह से तिवारी दावेदारी कमजोर हो गई। इन चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 1994 में तिवारी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर तिवारी कांग्रेस बनाई। हालांकि, सोनिया गांधी के राजनीति में उतरने के बाद 1995 में तिवारी और अर्जुन सिंह कांग्रेस में वापस आ गए।
तिवारी 1976-77, 1984-85, 1988-89 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2002-2007 तक वे उत्तराखंड के सीएम रहे। वे 2007 से 2009 तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे। वह नेहरू-गांधी के दौर के उन चंद नेताओं में थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय योगदान दिया था।