षोडश महाजनपदों में चेदि, बाद में दशार्ण, चंदेलों के समय जेजाकभुक्ति और बुंदेल शासकों के नाम पर बुंदेलखंड. उत्तर प्रदेश के दक्षिण और मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित इस क्षेत्र सीमाएं विभिन्न राजवंशों के समय अलग–अलग निर्धारित होती रहीं. अधिकांश मतों के अनुसार बुंदेलखंड गंगा, यमुना के दक्षिण और पश्चिम में बेतवा नदी से लेकर पूर्व में विंध्यवासिनी देवी के मंदिर तक फैला हुआ था. इसलिए ऐसा भी माना जाता है कि इसका नाम विंध्येलखंड था जिसका अपभ्रंश होते होते अब यह इलाका बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट हमीरपुर, बांदा और महोबा तथा मध्य–प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया जिले आते हैं.
बुंदेलखंड के प्राचीन इतिहास के संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण धारणा यह है कि यह चेदि जनपद का हिस्सा था. कुछ विद्वान चेदि जनपद को ही प्राचीन बुंदेलखंड मानते हैं. बौद्धकालीन इतिहास के संबंध में बुंदेलखंड में प्राप्त उस समय के अवशेषों से स्पष्ट है कि बुंदेलखंड की स्थिति में इस दौरान कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ था. चेदि की चर्चा न होना और वत्स, अवंति के शासकों का महत्व दर्शाया जाना इस बात का प्रमाण है कि चेदि इनमें से किसी एक के अधीन रहा होगा. पौराणिक युग का चेदि जनपद ही इस प्रकार प्राचीन बुंदेलखंड है.
समय–समय पर अनेकों शासकों ने इस भू–भाग पर राज्य स्थापित कर अपनी छाप छोड़ी है, कभी गुप्त साम्राज्य तो कभी वाकाटक, नागवंशी, प्रतिहार, चन्देल, खंगार, बुन्देला आदि. १४वीं शताब्दी में पंचम बुंदेला ने बुंदेलखंड राज्य की नींव रखी. उन्हें ही बुंदेलों का पूर्वज माना जाता है.
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बुदेलखंड खुद में एक गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है. जिसका बखान यहां का कण–कण करता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 1857 में मेरठ में प्रथम स्वातंत्र्य समर की जो ज्वाला भड़की थी उससे 15 साल पहले ही बुन्देलखंड की धर्मनगरी चित्रकूट में स्वतंत्रता के लिए एक क्रांति का सूत्रपात हो चुका था. जब पवित्र मंदाकिनी के किनारे गोकशी के खिलाफ एकजुट हुई हिंदू–मुस्लिम बिरादरी ने मऊ तहसील में अदालत लगाकर पांच फिरंगी अफसरों को फांसी पर लटका दिया था. इसके बाद जब–जब अंग्रेजों या फिर उनके किसी पिछलग्गू ने बुंदेलों की शान में गुस्ताखी का प्रयास किया तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया. लेकिन आजादी के संघर्ष की पहली मशाल सुलगाने वाले बुंदेलखंड के रणबांकुरे इतिहास के पन्नों में जगह नहीं पा सके, लेकिन उनकी शूरवीरता की तस्दीक फिरंगी अफसर खुद कर गये हैं. अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लिखे बांदा गजट में एक ऐसी कहानी दफ्न है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. गजेटियर के पन्ने पलटने पर मालूम हुआ कि वर्ष 1857 में मेरठ की छावनी में फिरंगियों की फौज के सिपाही मंगल पाण्डेय के विद्रोह से भी 15 साल पहले चित्रकूट में क्रांति की चिंगारी भड़क चुकी थी.
भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद बुंदेलखंड में जो एकता और समरसता है, उसके कारण यह क्षेत्र अपने आप में सबसे अनूठा बन पड़ता है. बुंदेला, शासकों और महाराजा छत्रसाल का इतिहास होने के बावजूद बुंदेलखंड की अपनी अलग ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत है. बुंदेली माटी में जन्मी अनेक विभूतियों ने न केवल अपना बल्कि इस अंचल का नाम खूब रोशन किया और इतिहास में अमर हो गए. महान चन्देल शासक बिधाधर चन्देल, आल्हा–ऊदल,महाराजा छत्रसाल,राजा भोज, ईसुरी, कवि पद्माकर, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, डॉ॰ हरिसिंह गौर, दद्दा मैथिली शरण गुप्त, मेजर ध्यान चन्द्र, गोस्वामी तुलसी दास, माधव प्रसाद तिवारी आदि अनेक महान विभूतियाँ इसी क्षेत्र से संबद्ध हैं.