पंरपरागत खेती छोड़, रेशम की तरफ बढ़ा बुंदेलखंड के किसानों का रुझान

मौसम की मार और अन्ना जानवरों से परेशान बुंदेलखंड के किसानों का अब पंरपरागत खेती से मोह भंग होता जा रहा है। अब उनका रुझान रेशम की खेती पर ज्यादा बढ़ा है। अब तक बुंदेलखंड के 3700 से ज्यादा किसानों ने रेशम की खेती अपना ली है। जिला योजना के तहत कई जनपदों को रेशम की खेती को बढ़ावा देने के लिए धनराशि भी आवंटित की जा चुकी है।

इसी साल अगस्त महीने में ऐरी रेशम विकास योजना के तहत लगभग छह लाख रुपए आवंटित किए हैं, जिसमें बांदा को 1 लाख 69 हजार, हमीरपुर के लिए 1 लाख 30 हजार, चित्रकूट के लिए 1 लाख 29 हजार एवं जालौन के लिए 1 लाख 69 हजार रुपए आवंटित हुए हैं।

तीन दशक पूर्व रेशम विभाग ने ट्रायल के तौर पर अपनी फर्मो में टसर (कोया) का उत्पादन किया था, पर इसका दायरा ज्यादा विस्तार नहीं ले पाया। इसके बाद वर्ष 2007-08 में सरकार ने फिर से रेशम विकास कार्यक्रम को बढ़ावा दिया,अब यही फार्मूला जोर पकड़ रहा है। सरकार की ओर से भी रेशम कीट पालन को बढ़ावा देने के लिये उत्प्रेरित विकास योजना शुरूआत की गई है। इस योजना के तहत रेशम कीट पालन व्यवसाय से जुड़ने वाले किसानों और महिलाओं को पच्चास फीसदी सब्सिडी प्रदान की जा रही है।

रेशम की खेती के लिए यमुना की पट्टी अच्छी मानी गयी है और बुंदेलखंड का अधिकतर क्षेत्रफल यमुना के किनारे पर स्थित है। जालौन के कालपी,बांदा के तिंदवारी,हमीरपुर के मूसानगर और मनकी आदि क्षेत्रों में रेशम की पैदावार काफी अच्छी मात्रा में हुई है। ऐसे में सरकार की ओर से भी रेशम की खेती के लिए सहायता मिलने पर बुंदेली किसानों के दिन बहुर सकते हैं।

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