कानपुर: आईआईटी कानपुर की तकनीकि के जरिए अब जल्द सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड में भी फसल लहलहा सकेंगी। दरअसल देश के इस अग्रणी प्रोद्योगिकी संस्थान ने कृत्रिम बारिश की तकनीकि विकसित की है, जिससे इस क्षेत्र में बारिश कराई जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए हरी झंडी दे दी है। प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि इसके इस्तेमाल के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सहमति दी है।
कृत्रिम बारिश का प्रयोग उन क्षेत्रों में किया जाएगा, जहां पर बारिश नहीं होने से किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचता है। इससे सूखे की समस्या से निजात मिल सकेगी।
एक कार्यक्रम में शामिल होने आए सिंचाई मंत्री ने बताया कि कुछ समय पहले महोबा क्षेत्र में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए चीन से कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनी थी। उस समय चीन से एक किलोमीटर क्षेत्र में कृत्रिम बारिश के लिए 10।30 लाख की राशि देने पर सहमति भी बन गई थी। फिर अचानक चीन ने अपनी कृत्रिम बारिश की तकनीकि देने से मना कर दिया। अब आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई कृत्रिम बारिश की तकनीक से सूखे से निपटने में आसानी होगी। मंत्री ने बताया कि कृत्रिम बारिश की जरूरत ज्यादातर बुंदेलखंड के क्षेत्रों को है। जल्द ही इसका प्रयोग शुरू कर दिया जाएगा।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाये जाते हैं जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है। ये प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है।
पहला चरण:
पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके वांछित इलाक़े के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ़ भेजा जाता है जिससे वे वर्षा के बादल बना सकें। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है। ये यौगिक हवा से जल वाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।
दूसरा चरण:
इस चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ़ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है।
तीसरा चरण:
अब बारी आता है तीसरे चरण की। यह प्रक्रिया तब की जाती है जब या तो बादल पहले से बने हुए हों या ऊपरी दो प्रक्रिया क द्वारा बना लिये गए हों। इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिड़काव किया जाता है, इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरुप (ice crystal) में बदल जाते हैं और जब वे इतने भारी हो जाते हैं कि और कुछ देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं तो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। सिल्वर आयोडाइड को निर्धारित बादलों में प्रत्यारोपित करने के लिए हवाई जहाज, विस्फोटक रौकेट्स (Explosive Rockets) या गुब्बारे का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक को 1945 में विकसित किया गया था और आज लगभग 40 देशों में इसका प्रयोग हो रहा है। कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इसी प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
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