देश में रामराज हो न हो लेकिन बुंदेलखंड की अयोध्या यानि ओरछा में आज भी राम का राज चलता है। यहां भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर है लेकिन वे यहां भगवान के रूप में नहीं बल्कि राम राजा सरकार के रूप में विराजमान हैं। यही वजह है कि यहां आरती के हर वक्त उन्हें सशस्त्र सेना बल के जवान गार्ड ऑफ ऑनर देते हैं। दुनियाभर में ओरछा ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां भगवान राम को जीवंत राजा माना गया है। अब आपके दिमाग में चल रहा होगा कि राम तो अयोध्या के राजा थे, फिर वे यहां के राजा कैसे बने और यहां कैसे पहुंचे? इसके पीछे एक लंबी कहानी है।
बात सोलहवीं सदी की है। यहां के राजा मधुकर शाह भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे और उनकी पत्नी कुंअर गणेशी भगवान श्रीराम की। एक बार दोनों में अपने अपने आराध्य देवों को लेकर बहस होने लगी तो मधुकर शाह ने अपनी पत्नी से कहा कि वे जाकर अपने भगवान को अयोध्या से ओरछा ले क्यों नहीं आतीं! इसके बाद कुंअर गणेशी ने ठान लिया कि वे भगवान राम को लेकर ही वापस ही लौटेंगी। काफी समय तक तपस्या करने के बाद जब भगवान राम ने उन्हें दर्शन नहीं दिए तो वे सरयू में कूद कर जान देने जाने लगीं तभी उन्हें तट पर एक साधु ने रोक लिया और उन्हें गुप्त स्थान पर रखी भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां दे दीं। बताया जाता है कि ये वही असली मूर्तियां थीं जो मुगल आक्रांताओं से छिपाकर रखीं गईं थीं।
भगवान राम ने रखीं चार शर्तें
अगले दिन इन मूर्तियों को लेकर कुंअर गणेशी को ओरछा रवाना होना था लेकिन उसी रात उनके सपने में भगवान श्री राम आते हैं और उनके सामने चार शर्तें रखते हैं। पहली ये कि वे सिर्फ पुख्य नक्षत्र के बीच ही यात्रा करेंगे और वो भी पैदल। जहां पुख्य नक्षत्र खत्म हो जाएगा वहीं पड़ाव डाल दिया जाएगा। दूसरी ये कि ओरछा का शासन उनके नाम से चलेगा और वे ही वहां के राजा होंगे। तीसरा उनकी मूर्ति एक बार जहां रख दी जाएगी वहां से हिलेगी नहीं और चौथी शर्त थी कि वे दिन के समय ओरछा में रहेंगे और रात के समय अयोध्या में। रानी ने भगवान राम की ये सभी शर्तें मान लीं और राजा मधुकर शाह को खबर भिजवा दी कि वे भगवान को लेकर ओरछा आ रही हैं।
महल ही बन गया मंदिर
रानी का संदेश पाकर यहां ओरछा में मधुकर शाह ने भगवान राम के लिए भव्य चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाना शुरु कर दिया। पुख्य नक्षत्र में चलकर 8 माह 28 दिन बाद कुंअर गणेशी ओरछा पहुंची। यहां चतुर्भुज मंदिर का निर्माण अभी पूरा नहीं हो सका था तो रानी ने भगवान की मूर्ति को राजमहल के ही रसोई घर में रख दिया। मंदिर बनने के बाद जब मूर्ति को वहां से उठाया गया तो वह उठी ही नहीं और यहीं उनका मंदिर बना दिया गया। वहीं रानी के वचन के अनुसार मधुकर शाह ने भगवान राम को ओरछा का राजा घोषित कर दिया और अपना सारा राजपाठ उन्हें सौंपकर खुद टीकमगढ़ चले आए।
ओरछा के भीतर नहीं दी जाती किसी अन्य को सलामी
राम राजा सरकार के होने की वजह से ओरछा की चारदीवारी के अंदर न तो किसी राजनेता को सलामी दी जाती है और न ही कोई मंत्री अथवा अधिकारी अपनी गाड़ी की बत्ती जलाकर आता है। राम राजा मंदिर का नियम इतना कड़ा है कि ये किसी के लिए नहीं बदलता। प्रधानमंत्री को भी राम राजा सरकार के दर्शन करने के लिए मंदिर के पट खुलने का इंतजार करना होता है। पंजाब में ‘ब्ल्यू स्टार ऑपरेशन’ से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां आई थीं तो उन्हें भी मंदिर के द्वार खुलने के लिए इंतजार करना पड़ा था।