पन्ना धाय: एक मां जिसने बेटे की जान देकर निभाया राजधर्म

अभिषेक गोस्वामी ‘हर्षवर्धन’

एक मां अपने पुत्र के लिए सर्वस्व बलिदान कर सकती है। अस्सी के दशक में तो न जाने कितनी फ़िल्मों की कहानी का आधार ही मां का त्याग और समर्पण रहा है. इतिहास मे भी ऐसे असंख्य उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां माता ने अपने पुत्र के लिए अपने प्राणों तक को संकट में डाल दिया. पर क्या आप किसी ऐसी मां को जानते हैं, जिसने स्वामिभक्ति में किसी दूसरे के पुत्र की प्राण रक्षा के लिए अपने बेटे का बलिदान कर दिया हो. इतिहास के पन्नों में दर्ज है एक ऐसी ही मां की दास्तान जिसने राजधर्म निभाने के लिए अपने बेटे की जान की भी फ़िक्र नहीं की.

आज के अंक में प्रस्तुत है राजस्थान की ऐसी ही एक मशहूर और महान माता ‘पन्ना धाय’ की कहानी…

पन्ना, मेवाड़ के सिसोदिया वंशीय प्रतापी राजपूत राजा महारणा संग्राम सिंह (1472ई0 – 1528ई0) की दूसरी पत्नी कर्णावती (कर्मवती) की सेविका थीं। ये वही महाराणा संग्राम सिंह है जिन्हें प्रचलित रूप में ‘राणा सांगा’ के नाम से जाना जाता है। रानी कर्णावती बूंदी की शासिका भी थीं। वे राणा की मृत्यु के पश्चात अपने दो पुत्रों को लेकर रणथंभौर चली गईं थीं। वहाँ से बाद मे वे चित्तौड़ चली गईं। 8 मार्च 1535 को जब रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया और देवलोक चलीं गईं, तब उनके पुत्र उदय सिंह (उदय सिंह ॥) का लालन पालन पन्ना ने ही किया था। रानी को उदय सिंह के अतिरिक्त विक्रमादित्य नाम के एक और पुत्र थे। इन्हीं उदय सिंह से आगे चलकरपुत्र रूप में राजपूत कुल शिरोमढ़ी महाराणा प्रताप (1540 ई0 – 1597 ई0) का जन्म हुआ। चूंकि पन्ना ने माँ के स्थान पर उदय सिंह (1522 ई0 – 1572 ई0) को दूध पिलाया था, इसलिए उनका नाम पन्ना ‘धाय’ हो गया।

पन्ना किसी राजपरिवार से संबंध नहीं रखती थीं। उनका विवाह कमेरी गांव में हुआ था। पन्ना का वास्तविक नाम पन्ना गूजरी था। उनका जन्म चित्तौढ़ के निकट ‘माताजी की पंडोली’ नाम के गाँव मे हुआ था। उनके पिता का नाम हरचंद हांकला और पति का नाम सूरजमल चौहान था।उनके पुत्र  का नाम चन्दन था, और वह राजा उदय सिंह का हमउम्र और बालसखा था। यह घटना उस समय की है, जब चित्तौड़ में राजनीतिक अस्थिरता फ़ेल गयी थी, और एक दासी का पुत्र बनवीर चित्तौड़ के राजसिंहासन पर अधिकार करना चाहता था। बनवीर राणा  सांगा के बड़े भाई पृथ्वीराज का नाजायज पुत्र था, जो उनकी एक दासी से उत्पन्न हुआ था।  वनवीर ने पहले उदय सिंह के पिता और भाई को एक षड्यंत्र से मार डाला, और फिर एक एक कर राणा के सभी वंशजों की हत्या कर दी। आखिर में वह अपनी अंतिम बाधा युवराज उदय सिंह को मारने के लिए उन्हें खोजने उनके महल पहुंचा। उदय सिंह उस समय किशोर थे। पन्ना धाय बनवीर की मंशा समझ चुकी थी। वे युवराज के साथ चित्तौड़ के कुंभा महल में रहती थी। किन्तु इस कठिन समय में कोई निर्णय ले पाना सहज नहीं था। तब पन्ना धाय ने एक ऐसा एतिहासिक फैसला लिया, जिसने पूरे भारत वर्ष को समर्पण और कर्तव्यपरायणता की शक्ति के समक्ष नतमस्तक कर दिया।

पन्ना ने राजकुमार उदय सिंह को जूठी पत्तलों की एक टोकरी में छुपा कर महल के बाहर निकलवा दिया, और स्वयं अपने पुत्र चन्दन को राजकुमार उदय सिंह के कक्ष में सुला दिया। सत्ता की लालसा में अंधा बनवीर जब उदय सिंह को मारने पहुंचा , तो उसने पन्ना की आंखों के सामने ही उनके सोते हुए निर्दोष पुत्र चन्दन को राजकुमार उदय सिंह समझकर तलवार के वार से मौत के घाट उतार दिया। पन्ना भेद खुल जाने के डर से अपने पुत्र को अपनी आंखों के सामने मरता देखती रहीं, लेकिन एक बूंद आंसू भी नहीं बहा सकीं। इस तरह पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर अपने स्वामी के पुत्र और मेवाड़ राजवंश के भावी राजा के प्राणों की रक्षा की। राजस्थान समेत पूरे देश में आज भी पन्ना धाय के बलिदान, स्वामिभक्ति, कर्तव्यपरायंता, और मातृत्व की गाथा बड़े सम्मान से सुनाई जाती है।

बाद में युवराज उदय सिंह और पन्ना धाय अपने प्राण बचाते हुए जगह जगह भटके, और अंत में उन्हें कुंभलगढ़ में आश्रय मिला। कुंभल गढ़ का किलेदार आशा देपुरा था, जो एक महाजन था। बाद में सन 1542 ई0 मे उदय सिंह मेवाड़ के राणा भी बने।

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