बुंदेलखंड में पानी की किल्लत का तो दुनिया जानती है लेकिन जो बचे-खुचे स्त्रोत हैं वो भी बर्बादी की भेंट चढ़ गए हैं और चढ़ते जा रहे हैं. एक तरफ पहले प्यासे बुंदेलखंड की पीर को दिमाग में रखिए फिर ये सुनिए कि यहां की चार प्रमुख नदियां जहरीली हो गई हैं. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से होकर गुजरने वाली चार नदियों यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी का पानी इंसान के पीने के योग्य नहीं रहा.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में इन नदियों के पानी को जहरीला बताया गया है. जांच में पाया गया है कि बुंदेलखंड की धरती पर बह रहीं नदियों यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी के पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 पॉइंट प्रति लीटर और टोटल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है. अब इन नदियों का पानी किसी भी दशा में पीने के इस्तेमाल में में नहीं लाया जा सकता है. अगर ऐसा किया जाता है तो किडनी और पेट संबंधी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. और इस तरह की बीमारी के मामले इलाके में तेजी से बढ़ भी रहे हैं.
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टीडीएस पानी में कैल्शियम, मैग्नेशियम, पोटैशियम, सोडियम, क्लोराइड और सल्फेट्स जैसे अकार्बनिक पदार्थ और कुछ मात्रा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को मापने की इकाई होती है. WHO के तय मानक के अनुसार 100 से 150 टीडीएस के पानी को पीने के लिए सही बताया गया है, हालांकि कई विशेषज्ञ 300 टीडीएस तक के पानी आमतौर पर नुकसानदायक नहीं मानते हैं. लेकिन हमीरपुर जिले में यमुना नदी के पानी में टीडीएस 792 पॉइंट, बेतवा नदी में 964 पॉइंट, बांदा की केन नदी में 327 और चित्रकूट जिले की मंदाकिनी नदी के पानी में 364 पॉइंट टीडीएस पाया गया है. इसके अलावा इन नदियों के पानी में टोटल हार्डनेस (टीएच) की मात्रा भी बढ़ गई है. यमुना में 236.68, केन में 176.54, बेतवा में 159.08 और मंदाकिनी में 192.6 मिलीग्राम प्रति लीटर टीएच पाया गया है.
बुंदेलखंड के चित्रकूटधाम मंडल में कुछ छोटी नदियों बागै, रंज और बाणगंगा के अलावा बड़ी नदिया यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी बह रही हैं, जिनके पानी का उपयोग इंसान करते आए हैं. अब उनका पानी भी दूषित है.
बुंदेलखंड में पीने के साफ पानी की कमी एक बड़ी समस्या है. उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के सात जिलों मे फैले बुंदेलखंड का कोई भी ऐसा इलाका नहीं है जहां पीने के साफ पानी की कमी न हो. फिलहाल बुंदेलखंड में उद्योग और बड़े नाले न होने से नदियों का पानी ज्यादा प्रदूषित नहीं है, लेकिन पीने लायक भी नहीं कहा जा सकता. बारिश में नदियों का जलस्तर बढ़ने और बालू खनन से पानी ज्यादा गंदा हो जाता है.