बुंदेलखंड के एरच से शुरु हुई होली की प्रथा

होली आपसी सद्भाव और भाई चारे का त्योहार है. आज दुनिया भर में होली का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाने लगा है लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि होली की शुरुआत कहां से हुई? अगर आप किसी से ये सवाल पूछें भी तो उसका जवाब शायद ब्रज होगा लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल रंगो के त्योहार होली की शुरुआत बुंदेलखंड के एरच कस्बे से हुई है, जो झांसी जिले में पड़ता है. यही वो कस्बा है, जो कभी असुरराज हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करता था. इतिहास में इस बात के प्रमाण भी हैं कि सतयुग में इस एरच को ही ‘एरिकच्छ’ के नाम से जाना जाता था.

इस इलाके में पुराने महल के भग्नावशेष भी मिलते हैं, जो हिरण्यकश्यप के महल के बताए जाते हैं. खुदाई के दौरान यहां हिरण्यकश्यप काल की शिलाएं और होलिका की गोद में बैठे प्रह्लाद की मूर्तियां भी मिली हैं, जो ये साबित करती हैं कि होलिका, हिरण्यकश्यप का संबंध इसी इलाके से रहा है.

एरच के पास बेतवा नदी के किनारे डिकोली गांव है. बताया जाता है कभी इस गांव की जगह डिंकाचल पर्वत हुआ करता था. इसी पर्वत से प्रह्लाद को वेतवा नदी में फेंकने का प्रयास किया गया था लेकिन वे भगवान विष्णु के आशीर्वाद की वजह से बच गए. बाद में प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर आग में जलाकर मारने का प्रयास किया. लेकिन ये भी संभव नहीं हो पाया और वरदान प्राप्त होने के बावजूद इस आग में खुद होलिका ही जल गई.

कहा जाता है बाद में नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भगवान ने यहीं असुरों को गुलाल लगाकर उनसे आपसी दुश्मनी को खत्म करने का संदेश दिया था. वहीं लोगों ने बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक इस पर्व पर लोगों को रंग लगाकर उत्सव मनाना शुरु किया.

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