देसी ‘कामधेनु’ अब बनेगी थारपरकर नस्ल की गाय, बढ़ेगी बुंदेली ग्वालों की आय

बुंदेलखंड में छुट्टा जानवरों की समस्या लाइलाज होती जा रही है। छुट्टा जानवरों में सर्वाधिक संख्या गायों की रहती है । इन गायों के छुट्टा छोड़े जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण कम दूध का देना व इनकी नस्ल छोटी होना है। सामान्यतः ये गायें दो से तीन लीटर दूध देती हैं।

क्षेत्र में छुट्टे जानवरों की समस्या के निदान के लिए अब देसी गायों की नस्ल बदली जाएगी। यहां की देसी गायों का कृत्रिम गर्भाधान कराकर कराची व राजस्थान में पाई जाने वाली थारपरकर गाय में बदला जाएगा। थारपरकर गाय  के लिए बुंदेलखंड की जलवायु अनुकूल है। यह गाय दस लीटर तक दूध भी देती है, इसलिए आने वाले समय में ग्वालों की आय का बड़ा स्रोत भी बनेगी। इस प्रक्रिया से ज्यादतर बछिया ही पैदा होंगी। 422 गायों पर किए गए प्रयोग में लगभग 92 प्रतिशत गायों ने बछिया को जन्म दिया है।

शासन द्वारा लगातार किए गए प्रयोग के बाद यह सामने आया है कि बुंदेलखंड की जलवायु थारपरकर गाय के लिए अनुकूल है।इसलिए अब बुंदेलखंड की गायों की नस्ल  को थारपरकर गाय में बदलने का निर्णय लिया गया है। झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा और चित्रकूट जिले में इसी गाय के सेक्स सीमन से नस्ल सुधार किया जाएगा।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ योगेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि अब विदेशी नस्ल की गायों के सेक्स सीमन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। केवल देसी नस्ल साहीबाल, थारपरकर, हरियाणा, गिर और गंगातीर नस्ल की गायों के सेक्स सीमन का उपयोग कृत्रिम गर्भाधान के लिए होगा। बुंदेलखंड में थारपरकर गाय को बढ़ावा दिया जाएगा।

कराची से आई थारपरकर नस्ल की गाय
राजस्थान की थारपरकर नस्ल की गाय मूल रूप से पाकिस्तान के कराची क्षेत्र के थारपरकर जिले से आई है । राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र में यह सर्वाधिक पाई जाती है, यहाँ उसे ‘मालाणी’ गाय के नाम से जाना जाता है । ऐसी मान्यता है कि यही वह गाय है, जो भगवान श्रीकृष्ण के पास थी।

ये गाय सफेद रंग, पूर्ण विकसित माथा, कानों की तरफ झुके सींग, और सामान्य कद काठी (साढ़े तीन से पौने चार फीट) वाली होती हैं । थारपरकर गाय प्रतिदिन दस लीटर तक दूध देती है। यदि गाय बहुत कम दूध भी देगी तो छह से सात लीटर होगा । इस नस्ल की गायों की कीमत 30 से 60 हजार रूपये तक की होती है।

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