आख़िर डकैत क्यों डेरा डालते थे चम्बल के बीहड़ों में, पार्ट 2 में समझिये पूरी जानकारी

चम्बल की अर्थव्यवस्था और उद्योग

विधुत उत्पादन के साथ चम्बल के पानी से मध्य प्रदेश और राजस्थान की लगभग 7 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है. इसके चलते इसे राजस्थान के हाड़ोती की कामधेनु का नाम भी दिया गया है. चम्बल से होने वाली सिंचाई के चलते मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से सरसों, बाजरा, तिल, अरहर, सोरघम, ज्वार,रागी, उड़द, मूंग और कई फल व सब्जियों की खेती होती है. वहीँ इस नदी के पानी के राजस्थान के बीहड़ को उपजाव बनाने के चलते राजस्थान में मुख्य रूप से गेहू, सोयाबीन, चावल, तरबूज, मूंग, उड़द, मक्का, तिल, बाजरा, मूंगफली, गन्ना और गवार की बड़े स्तर पर खेती की जाती है. खेती अलावा चम्बल से पर्याप्त मात्रा में औद्योगिक जरूरतों के लिए पानी मिलने के चलते चंबल के किनारों पर बसे शहरों में कई उद्योग और रोजगार के साधन भी उपलब्ध हुए हैं. मध्य प्रदेश में चम्बल के किनारे बसे उज्जैन और नागदा में भी चम्बल के चलते कई बड़ी औद्योगिक इकाईयां स्थापित की गई है. भारत के जाने माने बिरला ग्रुप ने भी अपने बिज़नेस की शुरुवात उज्जैन ज़िले में स्थित नागदा में सीमेंट फैक्ट्री डालने से की थी. इसके साथ ही यहां कई बड़े और छोटे औद्योगिक उद्यम हैं, जिनमें मुख्य रूप से भारत की सबसे महत्वपूर्ण विस्कोस फ़ाइबर प्लांट कम्पनी ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, बायोमास ईंधन पर आधारित संयंत्र लैंक्सेस के साथ कई कागज़, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, सीमेंट, इंजीनियरिंग, चीनी और फूड प्रोसेसिंग उद्योग शामिल है. चम्बल के किनारे बसे कोटा शहर में एशिया के सबसे बड़े उर्वरक संयंत्र में से एक चंबल फ़र्टिलाइज़र्स एंड केमिकल्स लिमिटेड और श्रीराम फ़र्टिलाइज़र्स, विश्वभर में सीमेंट की जानी मानी कम्पनी मंगलम सीमेंट, भारत की सबसे बड़ी ग्लास कंपनियों में से एक सेमकोर ग्लास इंडस्ट्रीज, एशिया की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनियों में से एक इंस्ट्रूमेन्सन लिमिटेड, रेलवे वेगन बनाने फ़ैक्ट्री सिमको बिरला के साथ कई थर्मल पावर प्लांट, पारंपरिक स्वदेशी उद्योग, सीमेंट, तिलहन मिलिंग, डेयरी, आसवन, धातु हस्तशिल्प, साड़ी, खनन और कोचिंग उद्योग शामिल है. इसके साथ ही कोटा जिले में ही विश्व की सबसे बड़ी धनिया मंडी भी मौजूद है.

चम्बल की वनस्पति और वातावरण 

मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली चम्बल के विशाल वाटर बेसिन के चलते इसके किनारों पर एक चुनौतीपूर्ण वातावरण में अर्ध-शुष्क विस्तार से वनस्पति पनपती है. खड्डों की संरचनाओं और कांटेदार जंगलों के चलते इसके आसपास के जंगल और वनस्पतियों को उत्तरी उष्णकटिबंधीय वनों के तहत वर्गीकृत किया गया है. यह वर्गीकरण आम तौर पर 600 से 700 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों का संकेत देता है, जो कम शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है. चम्बल का इलाका कंटीली झाड़ियों और छोटे पेड़ों से घिरा हुआ है जो समय के साथ यहां की परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित हो गए हैं. चम्बल के किनारों पर 1000 से ज्यादा फूलदार पौधों की प्रजातियां, एनोजिसस लैटिफोलिया, ए. पेंडुला, टेक्टोना ग्रैंडिस, लैनिया कोरोमंडलिका, डायोस्पायरोस मेलानोक्सिलोन, स्टर्कुलिया यूरेन्स, मिट्रैग्ना पार्विफ्लोरा, ब्यूटिया मोनोस्पर्मा, एम्ब्लिका ऑफिसिनेलिस, बोसवेलिया सेराटा, ब्रिडेलिया स्क्वैमोसा और हार्डविकिया बिनाटा पायी जाती हैं. यहां की वनस्पतियों में मुख्य रूप से कैपेरिस डिकिडुआ, कैपेरिस सेपियारिया, बालानाइट्स एजिपियाका, बबूल सेनेगल, ए. निलोटिका, ए. ल्यूकोफ्लोआ, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा, ब्यूटिया मोनोस्पर्मा, मेटेनस इमर्जिनाटा, टैमरिक्स प्रजातियां, साल्वाडोरा पर्सिका, एस. ओलेओइड्स, क्रोटेलारिया मेडिकागिना, सी. बुरहिया, क्लेरोडेंड्रम फ़्लोमिडिस शामिल हैं.

चम्बल के बीहड़ और डाकू 

चम्बल नदी अपनी इन खासियतों के अलावा अपने बीहड़ के लिए भी काफी विख्यात या ये कहें की देशभर में कुख्यात रही है. सात जिलों के 2.19 लाख हैक्टेयर में फैला चंबल का बीहड़ एक समय में अपने कुख्यात डकैतों के लिए काफी चर्चा में रहा है. 70 के दशक में इन्हीं चंबल के बीहड़ों में प्रसिद्ध डाकू मलखान सिंह, पान सिंह तोमर, मुन्नी बाई, फूलन देवी, माखन सिंह, सुल्तान सिंह, रमेश सिंह सिकरवार, जैसे खूंखार डाकुओं की दहशत रही हैं. एक ज़माने में चम्बल के बीहड़ों का नाम सुनते ही लोग कांप जाते थे क्योंकि इन बीहड़ों में डकैत डेरा डाले रहते थे. यहां रहने वाले डकैत अपहरण, लूट, डकैती, हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देते थे. डकैतों के इन्ही किस्सों के चलते यहां कई फ़िल्में बनी हैं, जिसमे मुख्य रूप से पुतलीबाई, सुल्ताना, बैंडिट क्वीन, पानसिंह तोमर आदि फिल्में शामिल हैं जो यहां के डकैतों की जीवनी पर आधारित हैं. बीहड़ वो क्षेत्र होता है जो पानी के तेज बहाव और बरसात के चलते बार-बार अपनी आकृति बदलते रहता है और चंबल नदी की निकटता के कारण इसे चंबल के बीहड़ कहा जाता है. ये राजस्थान में धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, उत्तर प्रदेश में इटावा, मध्यप्रदेश में मुरैना, भिण्ड, श्योपुर आदि जिलों तक बीहड़ फैला हुआ है. हालंकि चम्बल सिर्फ अपने डकैत ही कुख्यात नहीं हैं बल्कि इसका पानी देश की अन्य नदियों के मुकाबले ज्यादा स्वच्छ और जलीय जीवों के अनुकूल होने के चलते, चम्बल में कई दुर्लभ और लुप्त होने की कगार पर खड़े जलीय जीवों और पक्षियों को संरक्षण मिल पाता है. चंबल नदी पर दुनिया के कुछ सबसे खास और विशेष अभयारण्य भी बसाये गए हैं. 

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