बुंदेलखंड के सबसे ख़ास पर्वों में से एक ‘भुंजरियां’, क्या है इसमें ऐसा?

बुंदेलखंड: रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है भुजरियां ,कजली पर्व, आज 20 अगस्त को मनाया जाएगा पर्व, जानिये इसके बारे में सब कुछ. श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरियां , कजली पर्व मनाया जाता है. यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है. अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया , इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं.  भुजरियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है. 

क्‍या है भुजरियां? 
जल स्त्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है. सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को छोटी-छोटी बांस की टोकरियों में या मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं. इसके बाद इन्हें रोजाना पानी दिया जाता है. सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है. तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्ना उग आता है, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है.

भुजरियों की पूजा का महत्‍व
इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें. श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरिया चार से छह इंच की हो जाती हैं. रक्षाबंधन के दूसरे दिन इन्हें एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद देते हैं. बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल का प्रतीक है. रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्त्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं.

यह है भुजरियों की कथा
इसकी कथा आल्हा की बहन चंदा से जुड़ी है. इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है. आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था. महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएं बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है. बताया जाता है कि राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी. राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी – सहेली के साथ गई थी. राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाए इसके लिए राज्य के बीर-बांकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था. इन दो वीरों के साथ में चन्द्रावलि के ममेरा भाई भी उरई से जा पहुंचे. कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में मामा वीरगति को प्यारा हुआ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीत शहीद हुआ. बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें वीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया. जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोग अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने (तोड़ने) लगी. इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है. कजलियों (भुजरियां) पर गाजे-बाजे और पारंपरिक गीत गाते हुए महिलाएं नदी तट या सरोवरों में कजलियां खोंटने के लिए जाती हैं.

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आदित्य हृदय नवोदित पत्रकार हैं. सामाजिक मुद्दों में विशेष रुचि रखते हैं.

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