पन्ना में आज भी 300 साल पुरानी तकनीकि से तराशा जा रहा हीरा

पन्ना: मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पिछले 400 सालों से हीरे और कई बहुमूल्य रत्नों का उत्खनन हो रहा है, लेकिन बावजूद इसके ये क्षेत्र पिछड़ा है. दरअसल यहां आज भी लगभग 300  साल पुरानी पद्धति से हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग की जाती है जबकि इस क्षेत्र में बहुत ही उन्नत तकनीकि विकसित हो चुकी है. वर्षों पुरानी तकनीकि से हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग में काफी समय लग जाता है जिससे यहां के हीरा कारोबारियों को उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना उन्हें मिलना चाहिए.

पन्ना डायमंड एसोसिएशन के सचिव सतेंद्र जडिया ने एक अन्य न्यूज वेबसाइट को बताया कि हर हीरे में 57 फलक होते हैं. इन सभी फलकों के कोण भी अलग अलग होते हैं, जिनका मेजरमेंट मैनुअल ही करना पड़ता है. इसके अलावा कारीगर के कौशल पर भी हीरे की कटिंग काफी मायने रखती है. उन्होंने बताया कि यहां हीरे की कलर ग्रेडिंग, क्लीयरिटी, केरेट वेट और कट सभी काम मैनुअल ही होते है. इससे हीरेकी 4  सी क्वालिटी अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर संभव नहीं हो पाती. यही वजह है कि यहां के हीरा कोराबार की चमक दिन बन दिन फीकी पड़ती गई. अब तो आलम ये है कि कई हीरा कटिंग और फॉलिशिंग के कारखाने बंद हो गए हैं. कुछ निपुण लोग अपने ही घर से काम कर किसी तरह कारोबार चला रहे हैं.

गौरतलब है कि मैनुअली और कंप्यूटर मेजरमेंट में तराशे गए हीरों की क्वालिटी में काफी अंतर होता है. कंम्यूटराइज्ड यूनिट में 3डी इमेज लेकर तय होता है कि किस एंगल से कहां और कितना कट लगाने पर हीरे में अधिकतम शुद्धता, वजन और गुणवत्ता मिलेगी. इससे कटिंग भी कई गुना आसान और सफाई से होती है.

हर साल एक अरब से अधिक रुपए के हीरे निकालने वाले पन्ना में इसकी कटिंग और पॉलिशिंग को लेकर श्रम विभाग, खनिज विभाग और न ही खनन विभाग बहुत गंभीर नहीं दिखाई देता है. जबकि सचिव जडिया का कहना है कि यदि पन्ना में कम्यूचराइज्ड हीरा कटिंग और पॉलिशिंग यूनिट की स्थापना होती है तो इससे पन्ना में होने वाला हीरा कारोबार सर्टीफाइड हो जाएगा और इसे बनने वाले गहनों को वैश्विक मार्केट में खासी पहचान मिलेगी. इतना ही नहीं यहां के हीरा कोराबार में बूम आने से जिले की स्थिति में भी सुधार होगा.

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