हमारे बुन्देलखण्ड के कई अंचलों में रमतूला वाद्य यंत्र का प्रयोग और दुलदुल घोड़ी नृत्य मांगलिक कार्यों में प्रमुखता से होता आया है, पर आजकल आधुनिकता के दौर में यह सब अब बहुत कम होता जा रहा है.
रमतूला ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसे बजाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. यह शुद्ध तांबे से निर्मित होता है. बुंदेलखंड में रमतूला को बजाकर शुभ और धार्मिक कार्यों की शुरुआत की जाती है. वहीं इसे बजाने वाला वादक इसके एवज में पैसे पारिश्रमिक के तौर पर नहीं, बल्कि प्रसाद के तौर पर ग्रहण करता है. यह शंख की तरह पवित्र और पूज्य भी माना जाता है, जो तीन भागों में बटा होता है. इसको जोड़ने पर यह हाथी की सूंड जैसा दिखाई देता है.
वहीं प्राचीन काल से चली आ रही लोक परंपराओं में दुलदुल घोड़ी नृत्य का विशेष महत्व रहा है. यह नृत्य मेले, त्योहार और समारोहों की शोभा बढ़ाता है. नर्तक घोड़ी के आकार का पहनावा धारण करता है. वह सिर पर पगड़ी बांधता है और चेहरे पर आकर्षक रंग लगाता है. धोती-कुर्ता पहने कलाकार रमतूला, तासे और ढपला की थाप पर नृत्य करते हैं. नृत्य के दौरान घोड़ी की लगाम खींचने पर कान और जीभ हिलते हैं, जिससे खट-खट की आवाज निकलती है.
बुंदेलखंड के सबसे प्रमुख संगीत यंत्रो में एक ‘रमतूला’, हाथी की सूँड जैसा आकार
