लखनऊ: अपनी शायरियों से पहचाने जाने वाले मशहूर शायर (71) मुन्नवर राणा का लखनऊ के पीजीआई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह काफ़ी समय से कई बीमारियों से ग्रसित चल रहे थे. उनके निधन की जानकारी उनकी बेटी सुमैया राणा ने दी. राणा अपनी उर्दू शायरियों एवं मां पर लिखी शायरियों की वज़ह से प्रसिद्ध थे. उनमें से मां पर लिखी उनकी एक शायरी “किसी को घर मिला किसी के हिस्से में या कोई दुकां आयी, मैं घर मे सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आयी” बहुत प्रसिद्ध है. राणा लगभग 2 साल से किडनी की बीमारी से ग्रसित थे और उनका डायलिसिस भी चल रहा था. साथ मे फेफड़ो की गंभीर बीमारी सीओपीडी से भी बहुत परेशान थे.
तालिबान से की थी आरएसएस और बीजेपी की तुलना
कुछ समय पहले पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान के हालात भारत से बेहतर है साथ ही आरएसएस, बीजेपी, बजरंगदल, विश्व हिंदू परिषद की तुलना उन्होंने तालिबान से की थी. उनके इस बयान पर काफ़ी विवाद भी हुआ था. उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान से ज्यादा क्रूरता भारत में है. आप पिछले 1000 सालों का इतिहास उठाकर देख लीजिए अफगानों से कभी भारतीयों को धोखा नहीं दिया. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने कहा था कि अगर योगी चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनते हैं तो वे पलायन कर लेंगे क्योंकि भाजपा ज्यादातर मुसलमानों के पलायन की बात करती है. उन्होंने कहा था कि यदि योगी का बस चले तो सारे मुसलमानों को जेल के अंदर कर दें.
रायबरेली में होंगे सुपुर्द-ए-ख़ाक
मुन्नवर की तबियत 13 जनवरी को अचानक बिगड़ती देख उनके बेटे ने उन्हें शिफ़्ट करने के लिए इंतजाम किया था. हालांकि कल यानि 14 जनवरी को उनका देहांत हो गया. उनके निधन की ख़बर सुनने के बाद उनके घर पर काफी लोग इकट्ठा हो गया. लखनऊ के अस्पताल से रवाना होने के बाद वे रायबरेली में सुपुर्द-ए-ख़ाक किये जायेंगे. राणा काफ़ी समय से कई सारी बीमारियों से ग्रसित चल रहे थे जिनमें किडनी इंफेक्शन, फेफड़ों की समस्या, सीने में दर्द, शुगर, ब्लड प्रेशर आदि थी. गॉल ब्लैडर में इंफेक्शन की वज़ह से उन्हें पिछले साल मई में एडमिट कराया गया था हालांकि उन्हें उस समय आराम मिल गया था. अब उनके बेटे तबरेज़ के आने के बाद ही उन्हें रायबरेली लाया जाएगा.
2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया
मुन्नवर को वर्ष 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था हालांकि उन्होंने इसे वर्ष 2015 में वापस कर दिया था. पुरुस्कार वापस लौटाने का कारण उन्होंने असहिष्णुता बताया था. ऐसे ही उनका कई विवादों से भी रिश्ता रहा है. एक बार किसान आंदोलन के समय उन्होंने कहा था कि संसद भवन को गिराकर वहाँ खेत बना देना चाहिए. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के समय उनका नाम वोटर लिस्ट से किसी कारणवश ग़ायब हो गया था.